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मंगलवार, 16 मार्च 2021

भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार (fandamental rights)

                 भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार
                        (fandamental rights) 

भारतीय नागरिकों को निम्नलिखित मूल अधिकार प्राप्त है-
समता या समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से अनुच्छेद 18)

स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद19-22)
शोषण के विरुद्ध अधिकार( अनुच्छेद 25 से 28)
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार( अनुच्छेद 29 से 30)
संवैधानिक उपचारों का अधिकार( अनुच्छेद 32)

समता या समानता का अधिकार:-
अनुच्छेद 14:- विधि से समझ समता इसका अर्थ है यह है कि राज्य सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाएगा तथा उन पर एक समान ढंग से उन्हें लागू करेगा।

अनुच्छेद 15:-  धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध राज्य के द्वारा धर्म मूल वंश जाति लिंग एवं जन्म स्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी भी क्षेत्र में भेदभाव नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 16:-  लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता राज्य के आधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता होगी( अपवाद अनुसूचित जनजाति एवं पिछड़ा वर्ग)

अनुच्छेद 17:-  अस्पृश्यता का अंत अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए इसे दंडनीय अपराध घोषित किया गया है।
अनुच्छेद18:- उपाधियों का अंत सेना या विधि संबंधी सम्मान के सिवाय अन्य कोई उपाधि राज्य द्वारा प्रदान नहीं की जाएगी। भारत का कोई नागरिक किसी अन्य देश से बिना राष्ट्रपति की आज्ञा की कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।

स्वतंत्रता का अधिकार:- 
anuchchhed 19 Mul sanvidhan mein 7 tahrh ki swatantrata ka ullekh tha ab sirf chah hai-

19 अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता

19 (बी) शांतिपूर्वक, बिना हथियारों के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतंत्रता

19( सी) संघ बनाने की स्वतंत्रता

19 (डी) देश के किसी भी क्षेत्र में आवागमन की स्वतंत्रता
देश की किसी भी क्षेत्र में निवास करने और बसने की स्वतंत्रता
कोई भी व्यापार एवम् आजीविका चलाने की स्वतंत्रता

अनुच्छेद 20:- अपराधों के लिए दोष सिद्ध के संबंध में संरक्षण इसके तहत तीन प्रकार की सुंदरता का वर्णन है:-

(ए) किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए सिर्फ एक बार ही सजा मिलेगी।

(बी)अपराध करने की के समय जो कानून है उसी के तहत सजा मिलेगी ना कि पहले और बाद में बनने वाले कानून के तहत।

(सी) किसी भी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध न्यायालय में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

अनुच्छेद 21:-
प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत अतिरिक्त उसके जीवन और व्येक्तिक स्वतंत्रता के आधार से वंचित नहीं किया जा सकता।
अनुच्छेद 21:- ( क):-राज्य 6 से 14 वर्ष के आयु के समस्त बच्चों को ऐसे ढंग में जैसा कि राज्य विधि द्वारा आधारित करें निशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराई जाए कराएगा (86 वा संशोधन 2000 के द्वारा)

संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्तव्य है:-
* भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों को संस्थाओं राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें।

* स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें।

*भारत की प्रभुता और एकता, अखंडता की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का परम पवित्र कर्तव्य है।

*भारत में धार्मिक भाषाई प्रादेशिक और वर्गीय विभिन्नताएं और भ्रात्रित्व बनाए रखना प्रत्येक नागरिक का दायित्व  नागरिकों का कर्तव्य है कि वे प्रथावो का बहिष्कार करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध है।

*हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उनका परिरक्षण करें।

*प्राकृतिक पर्यावरण जिसके अंतर्गत 1jl नदी और वन्यजीव भी हैं रक्षा और उनका संवर्धन करें तथा प्राणी मात्र के प्रति दया भाव रखें।

*नागरिकों का यहां भी कर्तव्य है कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाएं तथा मानववाद और अन्वेषण का सुधार की भावना का विकास करें।

*नागरिकों का यह भी कर्तव्य है कि वे सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करें और हिंसा से दूर रहें।

*व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रगति और उपलब्धि की नवीन ऊंचाइयों को छू सकें।

* प्रत्येक माता-पिता का या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86 वा संविधान संशोधन)

* 86 वें संशोधन संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा अनुच्छेद 51 का में 11 में मौलिक कर्तव्यों को जोड़ा गया है। इसके अनुसार अभिभावकों को यह कर्तव्य होगा कि वह अपने 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करें।

दंडात्मक व्यवस्था का अभाव:-
सरदार स्वर्ण सिंह समिति के अनुसार मौलिक कर्तव्यों की अवहेलना करने वालों को उचित दंड दिया जाना चाहिए और उनके लिए संसद को उचित कानूनों का निर्माण करना चाहिए परंतु अभी तक कुछ ऐसा कुछ नहीं किया गया है वास्तव में कर्तव्यों को के वर्तमान रूप को देखते हुए दंड की व्यवस्था करना अत्यंत कठिन कार्य है कर्तव्यों का स्वरूप नितांत अस्पष्ट है अतः नागरिकों को किसी भी आधार पर दंड दिया जा सकता है? अभिप्राय है कि कर्तव्यों की अवज्ञा करने वालों को दंडित कैसे किया जा सकता है? इसके लिए तो कर्तव्यों के रूप में परिवर्तन करना होगा

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