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मंगलवार, 5 मई 2020

शायरी shayri


अपनी मर्जी से कहां अपने सफ़र के हम हैं,
रुख़ हवाओं का जिधर का है, उधर के हम हैं।
पहले हर चीज थी अपनी मगर अब लगता है,
अपने ही घर में, किसी दूसरे घर के हम हैं |

 आओ चलो इस जहां को बांट लें,
 सूरज आपका किरनें हमारी |
समन्दर आपकी लहरे हमारी, 
अस्मा आपके सितारे हमारे 
चलो कुछ ऐसा करते हैं, 
कि सब कुछ आपका लेकिन आप हमारे ।।


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