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रविवार, 10 मई 2020

शायरी shayri

बेनाम - सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता,
जो बीत गया है वो गुज़र क्यों नहीं जाता।
सब कुछ तो है क्या ढूढ़ती रहती है निगाहें,
क्या बात है मै वक्त पे घर क्यों नहीं जाता।।



मंजिल गुम राहों के निशा मालूम नहीं, 
आज का दिन गुजरेगा कहां मालूम नहीं।
उन लोगों से यूं क्या कह सकता हूंं,
जिन लोगों को दिल की जुबां मालूम नहीं।।



बस जीने का ढंग यहां कुछ ऐसा रखिए,
अपने घरों की यादों को मत ताजा रखिए।
हमने आपके सारे वादे देख लिए,
आप अपने ही पास अपना हर वादा रखिए।।

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